
रायपुर, छत्तीसगढ़: यह कहानी सिर्फ किताबों की छपाई की नहीं है, बल्कि करोड़ों रुपये के एक ऐसे घोटाले की है जिसने छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम (CGTBC) की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रवर्तन निदेशालय (EOW) ने एक विस्तृत जांच के बाद 2000 पन्नों की चार्जशीट अदालत में पेश की है, जिसमें यह खुलासा हुआ है कि कैसे पर्यावरण कार्ड्स और अन्य पाठ्यपुस्तकों की छपाई में नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों का हेरफेर किया गया।
करोड़ों का खेल: ‘डाई कटिंग’ की आड़ में बंदरबांट!
मामले का दिल तब सामने आता है जब छत्तीसगढ़ पैकेजर्स (भिलाई) को 8,000 पर्यावरण कार्ड्स सेट की छपाई के लिए ₹2.04 करोड़ का भुगतान किया जाता है। सुनने में सामान्य लग सकता है, लेकिन जब कुल भुगतान ₹5.87 करोड़ तक पहुंच गया, जिसमें “डाई कटिंग” जैसे अस्पष्ट कार्य भी शामिल थे, तब घोटाले की परतें खुलनी शुरू हुईं। चौंकने वाली बात यह है कि वास्तविक देय राशि सिर्फ ₹1.83 करोड़ थी! यानी, प्रिंटरों को ₹4.03 करोड़ का भारी-भरकम अतिरिक्त भुगतान किया गया। टीडीएस और सेवा कर काटने के बाद भी, यह आंकड़ा ₹3.61 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी को दर्शाता है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि किस तरह छोटे-छोटे कार्यों की आड़ में जनता के पैसे का दुरुपयोग किया गया।
अधिकारियों और मुद्रकों की मिलीभगत
EOW की जांच में यह बात सामने आई है कि यह घोटाला सिर्फ एक कंपनी तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के अधिकारियों और निजी प्रिंटिंग फर्मों के बीच गहरी सांठगांठ थी। निविदा शर्तों का उल्लंघन कर पसंदीदा फर्मों को ठेके दिए गए और उन्हें अवैध लाभ पहुंचाया गया।
इन पर कसा कानूनी शिकंजा:
- सुभाष मिश्रा – तत्कालीन महाप्रबंधक, छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम।
- संजय पिल्ले – उप प्रबंधक (मुद्रण तकनीशियन), छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम।
- नंद गुप्ता – मुद्रक, छत्तीसगढ़ पैकेजर्स प्रा. लि.
- युगबोध अग्रवाल – मुद्रक, प्रबोध एंड कंपनी प्रा. लि. (जिनकी फर्म को हिंदी और गणित कार्ड्स की छपाई में भी अतिरिक्त भुगतान मिला था)।
एक बड़ा नाम अभी बाकी: जोसेफ मिंज पर भी गिरेगी गाज!
इस मामले में एक और बड़ा नाम सामने आया है – जोसेफ मिंज, जो छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के सेवानिवृत्त प्रबंध संचालक हैं। उनके खिलाफ भी जांच पूरी हो चुकी है और राज्य सरकार से अभियोजन स्वीकृति मिलते ही CrPC की धारा 173(8) के तहत उनके खिलाफ अलग से चालान पेश किया जाएगा। यह दर्शाता है कि घोटाले की जड़ें कितनी गहरी थीं।
यह घोटाला, जो 2009 और 2010 के दौरान हुआ था, सरकारी संस्थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करता है। EOW की इस कड़ी कार्रवाई से उम्मीद है कि ऐसे मामलों में लिप्त दोषियों को सजा मिलेगी और भविष्य में ऐसी अनियमितताओं पर लगाम लग सकेगी।