योग गुरु बाबा रामदेव, जिनका असली नाम रामकिशन यादव है, जो कभी केवल योग के मंच पर दिखते थे, आज पतंजलि आयुर्वेद के विशाल साम्राज्य के प्रमुख के रूप में जाने जाते हैं. उनकी पहचान जितनी योग और आयुर्वेद से है, उतनी ही उनके तीखे बयानों और कानूनी दांव-पेच से भी. यह कहना गलत नहीं होगा कि बाबा रामदेव और विवाद का चोली-दामन का साथ रहा है. क्या वे सचमुच ‘आदतन अपराधी’ हैं जो बार-बार अदालत की अवमानना करते हैं, या यह सिर्फ एक सार्वजनिक व्यक्ति होने का परिणाम है? आइए, उनके कुछ प्रमुख विवादों पर एक मज़ेदार नज़र डालें.

पुत्र-बीजक: बेटा पैदा करने की गारंटी?
याद है वो समय जब बाबा रामदेव की पतंजलि पर ‘पुत्र-बीजक’ नामक दवा बेचने का आरोप लगा था? इस दवा का नाम ही इतना भ्रामक था कि लगा मानो यह सीधे-सीधे लड़का पैदा करने की गारंटी दे रही हो! भारतीय समाज में लड़के की चाहत को देखते हुए, यह विज्ञापन कितना संवेदनशील और संभावित रूप से हानिकारक हो सकता है, इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है. इस मामले ने बाबा रामदेव को खूब सुर्खियां बटोरीं, लेकिन सवाल यह था कि क्या एक ‘योग गुरु’ को इस तरह के वैज्ञानिक दावों से दूर नहीं रहना चाहिए था?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) से तकरार: एलोपैथी बनाम आयुर्वेद
कोरोना महामारी के दौरान, जब दुनिया भर के वैज्ञानिक और डॉक्टर महामारी से लड़ने के लिए संघर्ष कर रहे थे, बाबा रामदेव ने एलोपैथी को लेकर कुछ ऐसे बयान दिए जिससे IMA उनसे बुरी तरह नाराज़ हो गई. उन्होंने एलोपैथी को ‘दिवालिया और धोखाधड़ी’ तक कह डाला था! इस पर IMA ने उन्हें कानूनी नोटिस भेज दिया. अदालत ने भी उन्हें फटकार लगाई कि वे लोगों को एलोपैथी के खिलाफ भड़काना बंद करें. यह एक ऐसा मामला था जिसने आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच की बहस को और गरमा दिया, और बाबा रामदेव फिर से कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ गए.
रूह अफज़ा और डाबर घटना: ‘ब्रांड वॉर’ या नियमों की अनदेखी?पतंजलि के उत्पाद बाज़ार में आते ही, उन्होंने अन्य स्थापित ब्रांडों के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी. रूह अफज़ा जैसी लोकप्रिय शरबत को टक्कर देने के लिए पतंजलि ने भी अपना शरबत लॉन्च किया. आरोप लगे कि उनके विज्ञापन ऐसे थे जो सीधे तौर पर अन्य ब्रांडों की बुराई करते थे या उनकी नकल करते थे. डाबर के खिलाफ भी ऐसे ही विज्ञापनों को लेकर विवाद हुआ था. इन घटनाओं ने बाबा रामदेव के आक्रामक मार्केटिंग रणनीति को उजागर किया, जिस पर अक्सर झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के आरोप लगते रहे हैं. क्या यह सिर्फ बाज़ार में टिके रहने की होड़ थी, या फिर नियमों की अनदेखी?
खुद को ‘सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण’ बताना: एक और विवाद का कारण?
विवादों की इस लिस्ट में एक और दिलचस्प पहलू जुड़ता है जब बाबा रामदेव ने स्वयं को ‘सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण’ बताया. यह टिप्पणी कई लोगों को हैरान कर गई क्योंकि वे मूल रूप से यादव समुदाय से आते हैं, जिसे पारंपरिक रूप से ब्राह्मण वर्ग में नहीं रखा जाता. उनका यह दावा, खासकर जब वे एक योग गुरु और व्यावसायिक हस्ती के रूप में जाने जाते हैं, ने जाति और सामाजिक पहचान पर नई बहस छेड़ दी. कुछ लोगों ने इसे उनकी ब्राह्मणवादी मानसिकता के रूप में देखा, जबकि अन्य ने इसे उनके एक और अतिरंजित बयान के रूप में खारिज कर दिया. यह एक ऐसा दावा था जिसने उनके व्यक्तित्व और सार्वजनिक बयानों को लेकर चल रहे विवादों को और गहरा कर दिया.
अदालत की अवमानना: क्या यह ‘आदत’ है?
उपरोक्त मामलों के अलावा भी, बाबा रामदेव पर कई बार अदालत की अवमानना के आरोप लग चुके हैं. चाहे वह उनके विज्ञापनों को लेकर दिए गए अदालती आदेशों की अनदेखी हो, या फिर उनके बयानों को लेकर हुई फटकार, यह कहना मुश्किल है कि ये घटनाएं सिर्फ इत्तेफाक हैं. बार-बार अदालत के आदेशों की अनदेखी करने पर उन पर जुर्माना भी लगाया गया है.
तो, क्या बाबा रामदेव एक ‘आदतन अपराधी’ हैं? यह एक कठिन सवाल है. वे निश्चित रूप से विवादों के खिलाड़ी हैं, जो अक्सर अपनी बातों और विज्ञापनों से सुर्खियां बटोरते हैं. उनके आलोचक उन्हें आदतन अवहेलना करने वाला कह सकते हैं, जबकि उनके समर्थक इसे एक ‘क्रांति’ या ‘स्थापित व्यवस्था’ को चुनौती देने का प्रयास मान सकते हैं. हालांकि, एक बात तो साफ है कि बाबा रामदेव का जीवन और करियर, कानूनी लड़ाइयों और सार्वजनिक बहस का एक रोचक मिश्रण है, जो उन्हें भारतीय सार्वजनिक जीवन की एक अनोखी और मनोरंजक शख्सियत बनाता है.