सदियों पुराना वह शिव मंदिर जो कंबोडिया और थाईलैंड के बीच बना संघर्ष की वजह

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कंबोडिया-थाईलैंड सीमा पर स्थित प्रेह विहार मंदिर सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि सदियों से दो देशों के बीच चले आ रहे संघर्ष की जीवित कहानी है। भगवान शिव को समर्पित यह अद्भुत संरचना कब आस्था का केंद्र बनी और कब अंतर्राष्ट्रीय खींचतान का कारण, आइए जानते हैं…
डांगरेक पर्वत श्रृंखला की ऊँची चट्टानों पर स्थित, प्रेह विहार मंदिर किसी चमत्कारी नज़ारे से कम नहीं। 9वीं शताब्दी में खमेर साम्राज्य द्वारा निर्मित यह भव्य शिव मंदिर, अपनी अद्वितीय वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। कल्पना कीजिए, भगवान शिव को समर्पित यह पावन स्थल, जिसके हर पत्थर में सदियों पुरानी कहानियाँ छिपी हैं, आज दो पड़ोसी देशों – कंबोडिया और थाईलैंड – के बीच तीखे सीमा विवाद का मुख्य कारण बन गया है।
इतिहास की परछाई में विवाद की जड़ें
विवाद की शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत में हुई, जब फ्रांसीसी उपनिवेशवादी शक्तियों ने सीमांकन के दौरान कुछ नक्शे बनाए। इन नक्शों में मंदिर को कंबोडियाई क्षेत्र में दिखाया गया, जबकि थाईलैंड का दावा था कि मंदिर उनकी सीमा में आता है। यह मामूली-सी गलती, सदियों बाद एक बड़े अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष में बदल गई।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का अहम फैसला
1962 में, यह मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) तक पहुँचा। न्यायालय ने कंबोडिया के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मंदिर को औपचारिक रूप से कंबोडिया का हिस्सा घोषित कर दिया। यह फैसला कंबोडिया के लिए एक बड़ी जीत थी, लेकिन थाईलैंड इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाया और मंदिर के आसपास के क्षेत्र पर उसका दावा बरकरार रहा।
विश्व धरोहर का दर्जा और नया संघर्ष
2008 में, जब कंबोडिया ने प्रेह विहार को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित करवाया, तो थाईलैंड में राष्ट्रवादियों के बीच असंतोष भड़क उठा। उन्हें लगा कि यह उनके ऐतिहासिक दावों को चुनौती दे रहा है। इसके बाद सीमा पर कई बार हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें दोनों ओर के सैनिक और नागरिक हताहत हुए। 2011 में तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि एक हफ्ते तक भीषण गोलीबारी चलती रही, जिसने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ा दी।
आज भी जारी है तनाव
हालांकि, 2013 में ICJ ने अपने पिछले फैसले को दोहराते हुए थाईलैंड को मंदिर के आसपास के सभी सैन्य बलों को हटाने का आदेश दिया, लेकिन तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। थाईलैंड अभी भी मंदिर के कुछ आसपास के क्षेत्रों पर अपना दावा करता है, यह तर्क देते हुए कि सीमा का पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है।
प्रेह विहार मंदिर आज भी एक अद्भुत कलाकृति है, जो अतीत की गौरवशाली गाथा सुनाती है। लेकिन यह दो पड़ोसी देशों के बीच राष्ट्रीय गौरव, ऐतिहासिक दावों और अंतर्राष्ट्रीय कानून की जटिलताओं का भी प्रतीक है। यह मंदिर हमें याद दिलाता है कि कैसे आस्था के केंद्र, कभी-कभी भू-राजनीतिक संघर्षों का अखाड़ा भी बन सकते हैं।