
आज नाग पंचमी है। देशभर में साँपो को दूध पिलाने की, पूजा-अर्चना की और नागदेवता को प्रसन्न करने की धूम मची है। यह एक ऐसा दिन है जब हम उस प्राणी के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं, जिससे अक्सर ज़मीन पर हमारी मुठभेड़ जानलेवा साबित होती है।
धार्मिक दृष्टिकोण: आस्था, अंधविश्वास और अद्भुत विरोधाभास
सनातन धर्म में नागों का एक विशेष स्थान है। वे शिवजी के गले का हार हैं, विष्णुजी की शैय्या हैं, और पाताल लोक के अधिपति भी। नाग पंचमी का पर्व इसी श्रद्धा का प्रतीक है। हम मानते हैं कि नागों की पूजा करने से सर्प भय से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
पर यहीं पर आता है विरोधाभास का डंक। एक तरफ़ हम नागों को देवता मानते हैं, उनकी पूजा करते हैं, और उन्हें दूध पिलाते हैं (हालांकि वैज्ञानिक रूप से यह उनके लिए हानिकारक है)। दूसरी तरफ़, जैसे ही कोई सांप हमारे घर या खेत में दिखता है, हमारी पहली प्रतिक्रिया उसे मार देने की होती है। क्या यह हमारी आस्था की दोहरी मानसिकता नहीं? क्या यह सिर्फ़ एक दिन की श्रद्धा है, या फिर जीवन भर के लिए उनके प्रति सम्मान का अभाव?
धार्मिक ग्रंथों में नागों को प्रकृति का अभिन्न अंग बताया गया है, जो पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखते हैं। शायद नाग पंचमी हमें यह याद दिलाने के लिए भी है कि हम न केवल सांपों का सम्मान करें, बल्कि उन सभी जीवों का सम्मान करें जो इस धरती पर हमारे साथ सह-अस्तित्व में हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: अंधविश्वास से विवेक की ओर
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो नाग पंचमी पर सांपों को दूध पिलाना उनके लिए स्वास्थ्यकर नहीं है। सांप सरीसृप होते हैं और वे दूध पचा नहीं सकते। अक्सर त्योहारों पर पकड़े गए सांप पहले से ही भूखे और प्यासे होते हैं, और जब उन्हें दूध दिया जाता है, तो वे उसे पी लेते हैं, जिससे उन्हें गैस्ट्रिक समस्याएँ हो सकती हैं और वे मर भी सकते हैं।
वन्यजीव विशेषज्ञ और वैज्ञानिक लगातार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि हमें सांपों के प्राकृतिक आवास को बचाना चाहिए और उन्हें बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए। सांप पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं – वे चूहों और अन्य कीटों की आबादी को नियंत्रित करते हैं, जिससे हमारी फसलों की रक्षा होती है।
नाग पंचमी का वास्तविक सार सांपों को परेशान करना या उन्हें अप्राकृतिक भोजन देना नहीं है, बल्कि उनके प्रति जागरूकता बढ़ाना और उनके संरक्षण में योगदान देना है। अगर हम सचमुच नागदेवता को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो हमें उन्हें उनके प्राकृतिक रूप में रहने देना चाहिए और उनके आवासों को नष्ट होने से बचाना चाहिए।
पर ज़रा ठहरिए! क्या यह सिर्फ़ सांपों की पूजा का दिन है, या फिर यह हमारे अपने ही ‘मानव-सांपों’ को पहचानने और उन्हें ‘बधाई’ देने का भी एक सुनहरा अवसर है?
मानवीय दृष्टिकोण: हम और हमारे ज़हरीले रिश्ते
इंसानियत का एक अजीबोगरीब पहलू है। हम जिन सांपों से डरते हैं, उन्हें दूध पिलाते हैं। लेकिन हमारी ही बिरादरी में ऐसे ‘सांप’ भी घूमते हैं, जो बिना ज़हर के ही डसते हैं और जिनके डंक से रिश्ते, दोस्ती और विश्वास सब कुछ पल भर में तार-तार हो जाता है।
आप ख़ुद सोचिए:
- वो पड़ोसी, जो आपके सुख से ज़्यादा आपके दुख में दिलचस्पी रखता है, क्या वो नाग नहीं?
- वो सहकर्मी, जो पीठ पीछे आपके काम को बिगाड़ने में लगा रहता है, क्या वो विषधर नहीं?
- वो रिश्तेदार, जो आपकी तरक्की से जलता है और हमेशा नकारात्मक बातें करता है, क्या वो नागलोक का निवासी नहीं?
और हां अपने नाग रूपी दोस्तों रिश्तेदारों को गलती से दूध का कटोरा मत भेंट कर दीजिएगा! मामला बिगड़ भी सकता है।