A.I.( आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की प्यास: क्या चैटGPT है पर्यावरण के लिए खतरा??

हमारा चैटबॉट दोस्त, चैट जीपीटी, सिर्फ बातें ही नहीं करता, बल्कि खुद को ठंडा रखने के लिए ढेर सारा पानी भी पीता है! हाल ही में इस बात पर बहस तेज़ हुई है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बढ़ता उपयोग, विशेष रूप से चैट जीपीटी जैसे बड़े मॉडलों का, हमारे पर्यावरण पर क्या असर डाल रहा है। और यह सिर्फ ऊर्जा की बात नहीं है, बल्कि पानी की खपत भी इसमें एक बड़ा हिस्सा है।
AI की प्यास: क्या चैट जीपीटी पर्यावरण के लिए खतरा है?
आपने कभी सोचा है कि आपके एक सवाल का जवाब देने के लिए चैट जीपीटी कितना पानी इस्तेमाल करता होगा? यह सुनकर आप चौंक सकते हैं! वैसे तो एक चैट जीपीटी क्वेरी में सीधे तौर पर सिर्फ 0.000085 गैलन पानी (लगभग एक चम्मच का पंद्रहवाँ हिस्सा) इस्तेमाल होता है, लेकिन जब हम अरबों-खरबों सवालों की बात करते हैं, तो यह आंकड़ा आसमान छू लेता है।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि सिर्फ 300 चैट जीपीटी प्रश्नों में लगभग 1.5 लीटर पानी (यानी एक बड़ी बोतल पानी) का उपयोग हो सकता है। यह पानी सीधे तौर पर AI को चलाने वाले विशाल डेटा सेंटरों को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल होता है, क्योंकि ये सेंटर भयंकर गर्मी पैदा करते हैं। माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों ने भी स्वीकार किया है कि AI के विकास के कारण उनकी वैश्विक जल खपत में 34% की वृद्धि हुई है।
चैट GPT जैसे A.I.सिस्टम से पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव
पानी की अत्यधिक खपत:
* AI मॉडल (जैसे ChatGPT) को प्रशिक्षित करने और चलाने के लिए बड़े डेटा सेंटर की आवश्यकता होती है। ये डेटा सेंटर बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न करते हैं, और उन्हें ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में पानी का उपयोग किया जाता है।
* अनुमान बताते हैं कि GPT-3 जैसे बड़े AI मॉडल को प्रशिक्षित करने में लाखों गैलन पानी लग सकता है (जो सैकड़ों कारों के निर्माण या एक परमाणु रिएक्टर को ठंडा करने के लिए पर्याप्त है)।
* हालांकि एक व्यक्तिगत चैट जीपीटी प्रश्न में कम पानी लगता है (एक चम्मच का अंश), अरबों उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रतिदिन लाखों प्रश्नों को देखते हुए, कुल खपत बहुत बड़ी हो जाती है।
* सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में डेटा सेंटर होने पर यह समस्या और गंभीर हो जाती है, क्योंकि यह स्थानीय जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
ऊर्जा की अत्यधिक खपत और कार्बन उत्सर्जन:
* पानी की खपत के अलावा, AI डेटा सेंटर को चलाने के लिए भारी मात्रा में बिजली की भी आवश्यकता होती है।
* कुछ रिपोर्टों के अनुसार, एक चैट जीपीटी सर्च में गूगल सर्च की तुलना में 10 गुना अधिक बिजली की खपत होती है।
* यह बिजली अक्सर जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होती है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (कार्बन डाइऑक्साइड) में वृद्धि होती है और जलवायु परिवर्तन में योगदान होता है।
* माइक्रोसॉफ्ट (जो OpenAI में निवेश करता है) ने अपनी पर्यावरण रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि 2021-2022 के दौरान उसकी वैश्विक जल खपत 34% बढ़ गई है, जिसका एक बड़ा कारण AI के विकास से जुड़े शोध कार्य हैं।
ई-कचरा (E-waste):
* AI सिस्टम को चलाने के लिए उन्नत हार्डवेयर (सर्वर, प्रोसेसर आदि) की आवश्यकता होती है। इन हार्डवेयर का जीवनकाल सीमित होता है, और जब वे बेकार हो जाते हैं, तो वे ई-कचरे में बदल जाते हैं।
* ई-कचरे में पारा और सीसा जैसे जहरीले तत्व होते हैं, जो मिट्टी और पानी को प्रदूषित कर सकते हैं और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
संसाधनों का खनन:
* डेटा सेंटर के लिए आवश्यक हार्डवेयर के निर्माण के लिए सिलिकॉन, तांबा, सोना और एल्यूमीनियम जैसी धातुओं के खनन की आवश्यकता होती है। खनन प्रक्रियाएं भी पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं, जैसे कि वनों की कटाई, मिट्टी का क्षरण और जल ।
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यह समझना ज़रूरी है कि AI हमारी ज़िंदगी को कई तरह से बेहतर बना रहा है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। पानी की बढ़ती खपत, ऊर्जा की मांग और ई-कचरा जैसी चुनौतियाँ बताती हैं कि हमें तत्काल समाधानों की ज़रूरत है।
भविष्य में, हमें ऐसे AI मॉडल और डेटा सेंटर बनाने होंगे जो अधिक कुशल हों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करें। क्या हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जहाँ AI अपनी पूरी क्षमता से काम करे और साथ ही हमारे ग्रह की रक्षा भी करे? यह हम सब के लिए एक सोचने वाला सवाल है।