गुरु घंटाल: ज्ञान के भेष में अज्ञान का धंधा और पॉडकास्ट का मायाजाल!( गुरु पूर्णिमा पर विशेष)
गुरु पूर्णिमा का पावन अवसर है, जब शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में शीश नवाते हैं। लेकिन हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती, और हर गुरु ज्ञान का सागर नहीं होता। आज हम बात करेंगे उन “गुरु घंटालों” की, जो ज्ञान के नाम पर घंटियां बजाते हैं और अज्ञान का प्रसाद बांटते हैं!
एक होते हैं सच्चे गुरु, जो त्याग, तपस्या और ज्ञान के प्रतीक होते हैं। और फिर आते हैं हमारे “गुरु घंटाल”। ये वो लोग हैं जो इंटरनेट पर आपको ‘जीवन बदलने वाले कोर्स’ बेचते दिख जाएंगे, जिनकी फीस तो आसमान छूती है लेकिन ज्ञान का स्तर पाताल लोक में होता है।

इनके पास आपको हर समस्या का ‘रामबाण’ इलाज मिलेगा – चाहे वो रातोंरात अमीर बनने की स्कीम हो या फिर एक घंटे में पीएचडी करने का नुस्खा।
इन गुरु घंटालों की सबसे बड़ी कला है ‘शब्दजाल’। ये ऐसे-ऐसे भारी-भरकम शब्द इस्तेमाल करते हैं कि सुनने वाला सोच में पड़ जाए, “वाह! कितना ज्ञानी व्यक्ति है!” जबकि असल में उनकी बातों में सार कम और शोर ज़्यादा होता है। इनके सेमिनार्स में आपको प्रेरणादायक कहानियों का कोकटेल मिलेगा, जिनमें से ज़्यादातर कहीं और से कॉपी-पेस्ट की हुई होती हैं।
आजकल तो पॉडकास्ट वाले गुरु घंटालों की भी भरमार है। ये अपनी “गहरी” आवाज़ और “जीवन बदलने वाले” विचारों के साथ आपके कान के परदे फाड़ देंगे। इनके पॉडकास्ट आपको ‘सफलता के रहस्य’, ‘खुश रहने के 10 तरीके’ या फिर ‘ब्रह्मांड के गुप्त नियम’ जैसे नामों से मिलेंगे। ये अक्सर किसी ऊंचे पहाड़ पर या किसी कलात्मक स्टूडियो में बैठकर, बैकग्राउंड में धीमी धुन बजाते हुए, आपको बताएंगे कि कैसे आप अपने “इनर सेल्फ” को जगा सकते हैं, जबकि खुद उनका “आउटर सेल्फ” भी ठीक से नहीं जागा होता। ये अपने पॉडकास्ट में अक्सर ‘गेस्ट’ के तौर पर दूसरे गुरु घंटालों को बुलाते हैं, और दोनों मिलकर ज्ञान का ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि बेचारे श्रोता उसमें उलझ कर रह जाते हैं। इनकी बातें सुनने में बहुत गूढ़ और गहरी लगेंगी, लेकिन जब आप उन्हें समझने की कोशिश करेंगे, तो पाएंगे कि ये सिर्फ शब्दों का मकड़जाल है।
ये खुद को ‘लाइफ कोच’, ‘स्पिरिचुअल गुरु’ या ‘सक्सेस मेंटर’ जैसे फैंसी नामों से पुकारते हैं। इनके आश्रमों में एसी की ठंडक और कॉफी की खुशबू होती है, लेकिन ज्ञान की गरमाहट नदारद। ये आपसे कहेंगे, “अपने अंदर की शक्ति को जगाओ!” और फिर उसी शक्ति को जगाने के लिए आपसे मोटी रकम ऐंठ लेंगे। इनकी ‘गुरु दक्षिणा’ नगद में या ऑनलाइन ट्रांसफर से ही स्वीकार की जाती है, ज्ञान की पोटली से नहीं।
सबसे मज़ेदार बात तो तब होती है जब ये खुद किसी समस्या में फंस जाते हैं। तब इनके सारे ‘टिप्स एंड ट्रिक्स’ धरे के धरे रह जाते हैं, और ये खुद किसी और ‘गुरु घंटाल’ की शरण में जाते दिखते हैं!
आजकल तो ये हालात हो चुके हैं कि हर कोई आपको गुरु ही मिलेगा।
इसलिए यह मानकर चलें कि –“गुरु-गुरु की भीड़ में असली चेला वही है, जिसको देखकर गुरु अपना रास्ता बदल ले।”
तो अगर आपके गुरु घंटाल आपको देखकर रास्ता बदल लें, तो समझो आपने अपनी अज्ञानता का चोला उतार फेंका है और वे आपको अब और बेवकूफ नहीं बना सकते!
तो अगली बार जब कोई “गुरु घंटाल” आपको ज्ञान का लॉलीपॉप दिखाने आए, या फिर किसी पॉडकास्ट पर अपनी “दिव्य” आवाज़ में प्रवचन देने लगे, तो ज़रा रुकिए, सोचिए और अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कीजिए। क्योंकि ज्ञान कोई बेचने की चीज़ नहीं, और गुरु कोई डिग्री नहीं। सच्चा गुरु तो वो है जो आपको खुद की राह पर चलना सिखाए, न कि अपनी राह पर घसीटे।
वहीं पर हम सच्चे और नेकदिल गुरुदेवों को नमन करते हैंऔर दिल से उनका आभार प्रकट करते हैं।