छत्तीसगढ़, वह पुण्यभूमि जहां धान की खुशबू हवा में घुली रहती है और कोयले की चमक दिल में बसी है। लेकिन इन दिनों यहां धान से ज़्यादा बहस होती है ‘कौन छत्तीसगढ़िया और कौन परदेसिया’ पर। यह द्वंद्व इतना गहरा है कि इसे समझने के लिए हमें इतिहास के पन्ने नहीं, बल्कि व्हाट्सएप ग्रुपों के चैट खंगालने पड़ते हैं।

कहते हैं, छत्तीसगढ़िया वह है जिसकी चार पीढ़ियां यहीं की माटी में सनी हों। अगर आपके परदादा के परदादा भी इसी धरती पर लोट-पोट हुए थे, तो बधाई हो, आप “पक्के छत्तीसगढ़िया” हैं!
आपको सरकारी नौकरी में पहला हक है, चाहे उसके लिए कोई योग्यता हो या न हो। आपके पुरखों ने यहां की धूप सही, यहां की मिट्टी में हल चलाया, तो अब आप एसी में बैठकर अधिकार जता सकते हैं। यह आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे कोई “परदेसिया” कैसे छीन सकता है?
परदेसिया: बेचारे यात्री या अनचाहे मेहमान
अब आते हैं “परदेसिया” पर। ये वे बेचारे प्राणी हैं जो पता नहीं किस अज्ञानतावश या शायद बेहतर भविष्य की तलाश में, गलती से छत्तीसगढ़ की पावन भूमि पर कदम रख बैठे। इन्हें लगता है कि ज्ञान, कौशल, या अनुभव जैसी चीज़ें भी मायने रखती हैं। हाहा! कैसी भोली सोच है। परदेसिया आते हैं यहां अपनी ‘अहंकारी’ योग्यताएं लेकर। कोई आईटी कंपनी खोल देता है, कोई बड़ा अस्पताल चलाता है, और तो और, कुछ तो यहां सड़कें और पुल भी बनाने लगते हैं! ये सब करके ये छत्तीसगढ़ियों के लिए काम पैदा करते हैं, लेकिन क्या ये भूल जाते हैं कि काम तो छत्तीसगढ़िया ख़ुद भी पैदा कर सकते थे, बस उन्हें थोड़ा सा आरक्षण और प्रेरणा की ज़रूरत थी?
परदेसिया लोग अपनी ‘विचित्र’ भाषाओं में बात करते हैं—कोई बंगाली बोलता है, कोई सिंधी, कोई ओड़िया। जैसे हमारी मीठी छत्तीसगढ़ी में स्वाद नहीं है। और तो और, ये अपने त्योहार भी मनाते हैं! दुर्गा पूजा, गणेश चतुर्थी, लोहड़ी… जैसे हमारे हरेली और तीजा कम पड़ गए हों। इन्हें समझना चाहिए कि यहां सिर्फ छत्तीसगढ़ी संस्कृति ही फलेगी-फूलेगी, बाकी सब ‘बाहर का’ है।
वैमनस्य का मूलमंत्र: हम बनाम वे
यह वैमनस्य इतना प्यारा है कि इसने राजनीतिज्ञों को भी खूब काम दे दिया है। जब भी चुनाव आते हैं, यह मुद्दा धान के समर्थन मूल्य से भी ज़्यादा गरम हो जाता है। नेताजी मंच से दहाड़ते हैं, “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया!” और भीड़ जोश में भर जाती है, मानो सारी समस्या का समाधान इसी नारे में छिपा हो। परदेसिया डर जाते हैं, और जिनके पास थोड़ी बहुत बुद्धि होती है, वे अपने निवेश और नौकरियों के बारे में सोचने लगते हैं।
यह ‘हम बनाम वे’ की लड़ाई इतनी शानदार है कि इसने हमें विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे उबाऊ मुद्दों से ध्यान भटकाने का सुनहरा अवसर दिया है। जब तक हम इस बात पर लड़ सकते हैं कि कौन असली है और कौन नकली, तब तक हमें यह सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी कि असली समस्याएं क्या हैं।
तो अगली बार जब आप छत्तीसगढ़ में किसी को ‘छत्तीसगढ़िया’ या ‘परदेसिया’ कहते सुनें, तो मुस्कुराइए। क्योंकि यह सिर्फ शब्दों का खेल नहीं, यह एक ऐसी सामाजिक कॉमेडी है जिसमें सब अपने-अपने किरदार निभा रहे हैं, और स्क्रिप्ट राइटर कोई नहीं है। बस ड्रामे का मज़ा लीजिए, क्या पता आप भी किसी दिन ‘परदेसिया’ की सूची में शामिल हो जाएं, या शायद ‘पक्के छत्तीसगढ़िया’ होने का प्रमाण पत्र हासिल कर लें!
Editors Choice
छत्तीसगढ़ में “छत्तीसगढ़िया” और “परदेसिया” के बीच चल रहे वैमनस्य पर एक व्यंग्य है,जो हास्यबोध के लिए लिखा गया है।