रायपुर, छत्तीसगढ़ ने व्यापार को आसान बनाने और आम नागरिकों की जिंदगी को सुगम बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। आज छत्तीसगढ़ विधानसभा में जनविश्वास विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया है, जिससे अब छोटी-मोटी त्रुटियों को आपराधिक कृत्य की श्रेणी से हटाकर जुर्माने के दायरे में लाया गया है। यह विधेयक विकसित छत्तीसगढ़ की दिशा में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

विकसित छत्तीसगढ़ की ओर एक बड़ा कदम
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने इस विधेयक को विकसित भारत-विकसित छत्तीसगढ़ की दिशा में एक अहम पहल बताया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में भारतीय न्याय संहिता की तर्ज पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के बाद दूसरा ऐसा राज्य बन गया है जिसने जनविश्वास विधेयक पारित किया है। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य में व्यापार और रोजगार को बढ़ावा देना, साथ ही गैर-आपराधिक मामलों में व्यापारियों और आम नागरिकों को अदालती मुकदमों से बचाना है। यह विधेयक दंड देने के बजाय एक जिम्मेदार और व्यावहारिक व्यावसायिक माहौल बनाने पर केंद्रित है।
8 अधिनियमों के 163 प्रावधानों में संशोधन
जनविश्वास विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह नागरिकों और कारोबारियों द्वारा किए गए छोटे-मोटे तकनीकी उल्लंघनों को आपराधिक श्रेणी से हटाकर जुर्माने (शास्ति) के दायरे में लाता है। इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी कम होगी और अदालतों पर बोझ भी घटेगा। अब आम नागरिकों को छोटी गलतियों के लिए आपराधिक मामलों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इस विधेयक में छत्तीसगढ़ राज्य के नगरीय प्रशासन विभाग, नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम, सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, छत्तीसगढ़ औद्योगिक संबंध अधिनियम, और छत्तीसगढ़ सहकारिता सोसायटी अधिनियम से संबंधित 8 अधिनियमों के कुल 163 प्रावधानों में बदलाव किया गया है।
आसान होगा व्यापार, कम होगा कानूनी झंझट
इस विधेयक का लक्ष्य उद्यमियों को नियामक सूचनाओं से संबंधित देरी के लिए आपराधिक मुकदमे के डर से मुक्ति दिलाना है। अब ऐसे मामलों में केवल प्रशासकीय जुर्माना लगेगा, जिससे व्यापार करना और भी आसान हो जाएगा।
विधेयक में छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम 1915 के प्रावधान में भी संशोधन किया गया है। अब सार्वजनिक स्थल पर शराब के सेवन के पहले मामले में सिर्फ जुर्माना लगेगा, जबकि इसकी पुनरावृत्ति पर जुर्माना और कारावास दोनों का प्रावधान है।
इसी तरह, नगरीय प्रशासन विभाग के अधिनियम के तहत मकान मालिक द्वारा किराया वृद्धि की सूचना न देने पर पहले आपराधिक मामला दर्ज होता था। अब इसे संशोधित कर अधिकतम 1,000 रुपये की शास्ति का प्रावधान किया गया है। किसी सोसायटी द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन दाखिल करने में देरी होने पर भी अब आपराधिक कार्रवाई के बजाय नाममात्र का आर्थिक दंड लगेगा, खासकर महिला समूहों के मामलों में इसे और भी न्यूनतम रखा गया है। यदि कोई संस्था गलती से सहकारी शब्द का उपयोग कर लेती थी, तो उसे आपराधिक मुकदमे और दंड के प्रावधान के स्थान पर अब केवल प्रशासनिक आर्थिक दंड का प्रावधान है।
यह विधेयक निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ में व्यापारिक और सामाजिक परिदृश्य को बदलने वाला साबित होगा, जिससे आम आदमी और व्यवसायी दोनों को राहत मिलेगी!