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संडे की छुट्टी: एक भ्रम, एक वास्तविकता!

आह, संडे! वो जादुई दिन जिसका इंतज़ार हम पूरे हफ़्ते करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे प्यासा रेगिस्तान में पानी का इंतज़ार करता है। संडे का नाम सुनते ही दिमाग में आता है – आलस, आराम, परिवार, और असीमित शांति। लेकिन, ज़रा रुकिए! क्या ये सच में ऐसा ही होता है, या ये सिर्फ़ एक सुनहरी कल्पना है, जिसका विज्ञापन हमारे दिमाग को बचपन से दिखाया जाता रहा है?
सुबह की शुरुआत होती है, अलार्म बंद होता है (या कम से कम कोशिश तो की जाती है)। सूरज की किरणें खिड़की से झाँकती हैं, और आप सोचते हैं, “आज तो बिस्तर से हिलना ही नहीं है।” लेकिन, तभी याद आता है, “अरे हाँ! आज तो कपड़े धोने हैं।” और बस, यहीं से शुरू होती है संडे की अग्निपरीक्षा।
ब्रेकफ़ास्ट बनता है, जिसमें कुछ नया ट्राई करने की ‘उत्सुकता’ में अक्सर कुछ जल जाता है या बेस्वाद बन जाता है। बच्चे जागते हैं, और उनकी एनर्जी का स्तर आपको अपनी उम्र का एहसास कराता है। “पापा/मम्मी, आज क्या करें?” ये सवाल सुनते ही आपके दिमाग में 100 काम घूम जाते हैं, जो हफ़्ते भर से पेंडिंग हैं।
“चलो, आज थोड़ा बाज़ार घूम आते हैं।” ये एक और ऐसा जाल है, जिसमें आप खुशी-खुशी फंसते हैं। भीड़-भाड़, मोल-भाव, और फिर घंटों ट्रैफिक में फँसकर घर वापस आना। ऐसा लगता है, जैसे आप छुट्टी मनाने नहीं, बल्कि एक और काम निपटाने गए थे।
दोपहर होते-होते, घर में अचानक से सब शांत हो जाते हैं। आप सोचते हैं, “वाह! अब मिली शांति।” लेकिन, ये शांति अक्सर एक ‘नैप’ की शांति होती है, जिसमें आप मोबाइल पर सोशल मीडिया स्क्रॉल करते हुए कब सो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। और जब आँख खुलती है, तो शाम हो चुकी होती है।
“अरे! संडे तो खत्म होने वाला है!” ये एहसास आपको एक अजीब सी बेचैनी देता है। बचे-खुचे कामों को निपटाने की जल्दी, अगले दिन के लिए तैयारी, और फिर मन ही मन ये सोचना, “अगला संडे कब आएगा?”
तो क्या संडे सिर्फ़ एक मिथ है? या ये हमारी उम्मीदों का बोझ है, जो हम खुद इस पर डाल देते हैं? शायद दोनों। संडे हमें एक मौका देता है, खुद को रीचार्ज करने का, परिवार के साथ वक्त बिताने का। लेकिन, कई बार हम उसे ‘परफेक्ट’ बनाने की होड़ में और ज़्यादा थका देने वाला बना देते हैं।
खैर, संडे फिर आएगा। और हम फिर उसी उम्मीद के साथ उसका इंतज़ार करेंगे, कि शायद इस बार वो सच में ‘छुट्टी’ जैसा हो। तब तक के लिए, सोमवार की सुबह के लिए तैयार हो जाइए!

एडिटर कॉलम

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